नई दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली की अदालतों में वकीलों की ओर से आपराधिक मामलों में दायर याचिकाओं में पुराने आपराधिक कानूनों का उपयोग करने पर आपत्ति जताई है। जस्टिस चंद्रधारी सिंह ने हाई कोर्ट की रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि वे सुनिश्चित करें कि जो भी नयी याचिकाएं दायर हों, वे नए आपराधिक कानूनों के मुताबिक दायर हों।
हाई कोर्ट ने कहा कि ये काफी गंभीर बात है कि नए आपराधिक कानून 01 जुलाई से लागू कर दिए गए, लेकिन नई अर्जियां पुराने कानून के मुताबिक दायर की जा रही हैं। हाई कोर्ट ने साफ किया कि 01 जुलाई के पहले दाखिल याचिकाओं में भी पुराने आपराधिक कानूनों के साथ-साथ नए आपराधिक कानून का भी जिक्र होना चाहिए।
दरअसल, दिल्ली पुलिस ने एक आपराधिक अपील दायर की थी, जो पुराने कानून की अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत दाखिल की गई थीं। इस मामले पर दो दिनों की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने पाया कि नए आपराधिक कानूनों भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम के लागू होने के बावजूद वकील पुराने आपराधिक कानूनों का ही सहारा ले रहे हैं। ऐसा करना संसद की इच्छा का उल्लंघन है, जिसकी वजह से ये कानून पारित हुए। सुनवाई के दौरान दिल्ली पुलिस ने याचिका में संशोधन कर उसे नए आपराधिक कानून के तहत दाखिल करने का भरोसा दिया।
जस्टिस चंद्रधारी सिंह ने दिल्ली हाई कोर्ट के ही एक फैसले का जिक्र किया, जिसमें एक अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि भले ही एफआईआर 01 जुलाई 2024 के पहले दर्ज हुई हो लेकिन अग्रिम जमानत याचिका नए आपराधिक कानून के प्रावधानों के तहत ही होगी। दिल्ली हाई कोर्ट के इस रुख की तरह ही देश के दूसरे हाई कोर्ट ने भी रुख अपनाया है। ऐसे में हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल दिल्ली की अदालतों , पुलिस थानों और दूसरे प्राधिकारों को ये सूचित करें कि सभी प्रक्रियाएं नए आपराधिक कानून के तहत हों।