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दिल्ली आबकारी नीति: एलजी ने अरविंद केजरीवाल पर मुकदमा चलाने के लिए ईडी को मंजूरी दी


नई दिल्ली। आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक एवं दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की मुश्किलें विधानसभा चुनाव से ऐन पहले बढ़ती नजर आ रही हैं। शुरू से ही विवादों में रही दिल्ली की नई आबकारी नीति के मामले में उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने केजरीवाल के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को मंजूरी दे दी है। ईडी ने इसी महीने के आरम्भ में केजरीवाल के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति मांगी थी।
ईडी ने अपनी जांच-पड़ताल में कथित तौर पर आबकारी नीति को तैयार करने और उसके कार्यान्वयन में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार पाया था। इसका उल्लेख इस साल 17 मई को राऊज एवेन्यू कोर्ट में दायर अभियोजन शिकायत संख्या 7 में किया गया था। अदालत ने 9 जुलाई को शिकायत का संज्ञान लिया। ईडी की अभियोजन शिकायत में आरोप लगाया गया है कि केजरीवाल ने "साउथ ग्रुप" के सदस्यों के साथ मिलकर 100 करोड़ रुपये की रिश्वत ली और "टेलर-मेड" शराब नीति तैयार करके और उसे लागू करके निजी संस्थाओं को अनुचित लाभ पहुंचाया।
इसमें कहा गया है कि साउथ ग्रुप के लिए विभिन्न शराब की दुकानों में हिस्सेदारी सुनिश्चित की गई थी और उसे आबकारी नीति 2021-22 के उद्देश्यों के विरुद्ध कई खुदरा क्षेत्र रखने की अनुमति दी गई थी। ईडी ने अभियोजन शिकायत में यह भी आरोप लगाया कि अपराध की आय में से लगभग 45 करोड़ रुपये का इस्तेमाल गोवा चुनावों में केजरीवाल की मिलीभगत और सहमति से आम आदमी पार्टी के प्रचार के लिए किया गया था। जांच एजेंसी ने आरोप लगाया, "आम आदमी पार्टी अपराध की आय की “प्रमुख लाभार्थी” थी। केजरीवाल पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक तथा राजनीतिक मामलों की समिति और राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य होने के नाते अंततः गोवा चुनावों के दौरान धन के उपयोग के लिए जिम्मेदार थे।"

तत्कालीन मुख्य सचिव नरेश कुमार की आंतरिक रिपोर्ट के आधार पर जुलाई 2022 में एलजी ने दिल्ली आबकारी नीति 2021-22 के निर्माण और कार्यान्वयन में कथित प्रक्रियात्मक खामियों और नियमों एवं अधिनियमों के उल्लंघन की सीबीआई जांच की सिफारिश की। केजरीवाल को 21 मार्च, 2024 को मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। उन्हें सितंबर में सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दी थी।
हालांकि, इस मामले में आम आदमी पार्टी और केजरीवाल खुद को बेकसूर और बेदाग बताते रहे हैं। वह समय-समय पर दावा करते रहे हैं कि दो साल तक चली जांच में 50 हजार पन्नों के दस्तावेज दाखिल किए गए और बड़ी संख्या में छापेमारी की गई लेकिन कोई पैसा बरामद नहीं हुआ। इसके लिए वह केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा को जिम्मेदार ठहराते रहे हैं।

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