राजस्थान में पाठ्यक्रम से हटाई गई नेहरू-गांधी परिवार की किताबें: भाजपा सरकार का वैचारिक संतुलन या राजनीतिक हस्तक्षेप? जयपुर, 13 जुलाई 2025 शिक्षा मंत्री का कहना है कि इन पुस्तकों को पढ़ाने से विद्यार्थियों को परीक्षा में कोई अंक नहीं मिलते थे और यह केवल अतिरिक्त पठन सामग्री थी, जिसे अनावश्यक खर्च और पक्षपातपूर्ण जानकारी मानते हुए हटाने का निर्णय लिया गया है। सरकार के इस फैसले के बाद लगभग 4.9 लाख छपी हुई किताबों को स्कूलों से वापस मंगाया जा रहा है, जिनमें से 80 प्रतिशत पहले ही वितरित की जा चुकी थीं। शिक्षा विभाग के अनुसार, एक समिति गठित की जाएगी जो पाठ्यक्रम की समीक्षा कर भविष्य में सभी विचारधाराओं और नेताओं के योगदान को संतुलित ढंग से प्रस्तुत करेगी। इस निर्णय पर विपक्षी कांग्रेस ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इसे भाजपा की वैचारिक संकीर्णता बताया और कहा कि यह इतिहास के साथ अन्याय है। गहलोत ने कहा कि कांग्रेस के प्रधानमंत्रियों के कार्यकाल में देश को चंद्रयान, हरित क्रांति, बैंक राष्ट्रीयकरण, सूचना क्रांति और अनेक सामाजिक योजनाएं मिलीं, जिनका उल्लेख मिटाना नई पीढ़ी से सत्य छिपाने जैसा है। कांग्रेस नेताओं ने यह भी सवाल उठाया कि जब इन किताबों को सरकार द्वारा छपवाया और वितरित किया जा चुका था, तो अचानक ऐसा फैसला क्यों लिया गया? यह विवाद केवल शैक्षिक नहीं, बल्कि वैचारिक भी बनता जा रहा है। एक ओर भाजपा इसे "संतुलित इतिहास" की दिशा में कदम बता रही है, तो दूसरी ओर कांग्रेस इसे सत्ता के ज़रिए इतिहास को पुनर्लेखन करने का प्रयास मान रही है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आगे बनने वाली पाठ्यपुस्तकों में किस प्रकार की सामग्री शामिल की जाती है और क्या सभी ऐतिहासिक पात्रों को निष्पक्षता के साथ स्थान मिलेगा या नहीं। इस घटनाक्रम ने एक बार फिर यह बहस तेज़ कर दी है कि क्या शिक्षा व्यवस्था को राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त रखा जाना चाहिए या फिर हर सरकार अपने वैचारिक एजेंडे के अनुसार किताबों को बदलने का अधिकार रखती है। राजस्थान में यह निर्णय आने वाले समय में राष्ट्रीय स्तर पर भी नई बहस को जन्म दे सकता है।
राजस्थान की भाजपा सरकार ने एक बड़ा और बहस को जन्म देने वाला फैसला लेते हुए 11वीं और 12वीं कक्षा की पूरक पाठ्यपुस्तकों से उन किताबों को हटा दिया है, जिनमें नेहरू-गांधी परिवार के योगदान को प्रमुखता से प्रस्तुत किया गया था। “आज़ादी के बाद का स्वर्णिम भारत” नामक ये पुस्तकें अब राज्य के स्कूलों में नहीं पढ़ाई जाएंगी। शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने स्पष्ट किया कि इन किताबों में इतिहास को एकतरफा तरीके से दर्शाया गया था और उनमें केवल एक राजनीतिक परिवार का महिमामंडन किया गया था, जबकि स्वतंत्र भारत के निर्माण में योगदान देने वाले अन्य महापुरुषों जैसे सरदार पटेल, डॉ. अंबेडकर, लाल बहादुर शास्त्री, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, भैरों सिंह शेखावत और वसुंधरा राजे जैसे नेताओं की भूमिका का पर्याप्त उल्लेख नहीं किया गया।
राजस्थान में पाठ्यक्रम से हटाई गई नेहरू-गांधी परिवार की किताबें
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