नैनीताल। भगवान राम के 14 वर्ष के वनवास के उपरांत अयोध्या वापस लौटने एवं समुद्र मंथन के दौरान माता लक्ष्मी के धरती पर अवतरण का पर्व-दीपोत्सव नैनीताल एवं आसपास के क्षेत्रों में बेहद हर्षोल्लास व धूम-धाम के साथ मनाया गया।
इस वर्ष बड़ी संख्या में लोग दीपावली की तिथि को लेकर उपजे संशय के बीच 31 अक्टूबर व एक नवंबर यानी दो दिन दीपावली मनाते भी देखे गये। इस दौरान सरोवरनगरी रंग-बिरंगी रोशनी की लड़ियों से जगमगाती हुई और विश्वप्रसिद्ध नैनी सरोवर में अपना प्रतिबिंब देखती हुई दीपावली के साथ मानो होली का भी अहसास कराती दिखी।
इस अवसर पर घरों व मंदिरों में माता लक्ष्मी व प्रथम पूज्य गणेश की खील-खिलौने चढ़ाते हुए पूजा-अर्चना का भी लंबा दौर चला। घरों में गन्ने के तनों ने माता लक्ष्मी को सुंदर बनाने व रंग-बिरंगी दीपमालिकाओं तथा दीपकों व मोमबत्तियों से घरों को सजाने की होड़ भी दिखी। घरों की देहली पर लाल रंग के गेरू से लीपकर चावल के आटे को घोलकर बनाये ‘बिस्वार’ से अंगुलियों की पोरों से ऐपण दिये गये। घर के बाहर से भीतर तक माता लक्ष्मी के नन्हे पग चिह्न इस विश्वास के साथ बनाये गये कि माता महालक्ष्मी इन्हीं पग चिह्नाें पर चरण कमल रखकर घर के भीतर प्रवेश करेंगी। साथ ही भजन-कीर्तनों का भी लंबा सिलसिला चला। लोगों ने एक-दूसरे को घर की बनी और बाजार से लाई मिठाइयों का आदान-प्रदान कर भी खुशियां आपस में बांटीं। हल्की ठंड के बावजूद शाम से शुरू हुआ आतिशबाजी का धूम-धड़ाका रात के चढ़ने के साथ चढ़ता रहा और मध्य रात्रि के बाद और अगले दिन भी जारी रहा।