नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए तैयार हो गया है। सुप्रीम कोर्ट इन याचिकाओं पर 10 जुलाई को सुनवाई करेगा।
साेमवार काे याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, गोपाल शंकरनारायणन और शादान फरासत ने जस्टिस सुधांशु धुलिया की अध्यक्षता वाली वेकेशन बेंच के समक्ष मेंशन करते हुए याचिकाओं पर जल्द सुनवाई की मांग की। इन वकीलों ने कहा कि बिहार में अगर कोई मतदाता दस्तावेज नहीं दे पाएगा, तो उसका नाम मतदाता सूची से काटा जा सकता है। सिंघवी ने कहा कि बिहार में 8 करोड़ मतदाता हैं और उनमें से 4 करोड़ का गहन पुनरीक्षण करना है, ये असंभव टास्क है। जब कपिल सिब्बल ने कहा कि टाइमलाइन काफी सख्त है। अगर आप 2 जुलाई तक दस्तावेज जमा नहीं कर पाए, तो आप मतदाता सूची से बाहर हो जाएंगे। तब जस्टिस धुलिया ने कहा कि टाइमलाइन की कोई मान्यता नहीं है, क्योंकि अभी चुनाव की अधिसूचना जारी नहीं की गई है। उसके बाद कोर्ट ने 10 जुलाई को इन याचिकाओं पर सुनवाई करने का आदेश दिया।
इस मामले में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के अलावा एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की हैं। याचिका में बिहार में एसआईआर के लिए जारी निर्वाचन आयोग के आदेश को रद्द करने की मांग की गई है। एडीआर की ओर से वकील प्रशांत भूषण ने याचिका दाखिल कर कहा है कि निर्वाचन आयोग का ये आदेश मनमाना है। याचिका में कहा गया है कि निर्वाचन आयोग का ये आदेश संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21, 32 और 326 के साथ-साथ जनप्रतिनिधित्व कानून का उल्लंघन है। याचिका में कहा गया है कि निर्वाचन आयोग का ये आदेश मतदाता पंजीकरण नियम के नियम 21ए का भी उल्लंघन करता है।
याचिका में कहा गया है कि निर्वाचन आयोग का आदेश न सिर्फ मनमाना है, बल्कि ये उचित प्रक्रिया के बगैर जारी किया गया है। इससे लाखों मतदाता मताधिकार से वंचित हो सकते हैं। निर्वाचन आयोग के इस कदम से स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव बाधित होगा। मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के लिए अनुचित रुप से काफी कम समय-सीमा रखी गयी है, क्योंकि राज्य में ऐसे लाखों नागरिक हैं, जिनके नाम 2003 की मतदाता सूची में नहीं थे और जिनके पास विशेष गहन पुनरीक्षण के आदेश के तहत मांगे गए दस्तावेज नहीं हैं। याचिका में कहा गया है कि कुछ लोग इन दस्तावेज प्राप्त करने में सक्षम हो सकते हैं, लेकिन विशेष गहन पुनरीक्षण के लिए काफी कम समय-सीमा होने के चलते उन्हें समय पर ऐसा करने से रोक सकती है।
याचिका में कहा गया है कि बिहार एक ऐसा राज्य है, जहां गरीबी और पलायन उच्च स्तर पर है और यहां एक बड़ी आबादी के पास जन्म प्रमाण पत्र या अपने माता-पिता के रिकॉर्ड जैसे जरुरी दस्तावेज नहीं हैं। बिहार में इस तरह का अंतिम पुनरीक्षण 2003 में किया गया था।
बिहार के मतदाता सूची पुनरीक्षण मामले पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई को तैयार, सुनवाई 10 जुलाई काे
