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'दीनी तालीम के नाम पर बच्‍चों से छल करते अवैध मदरसे'


नई दिल्‍ली। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में एक पंथ को माननेवालों की मजहबी शिक्षा से किसी को कोई आपत्‍त‍ि नहीं हो सकती और न ही कभी होनी चाहिए। किंतु जब बात देश के सुनहरे भविष्‍य की हो और उस भविष्‍य को यदि मजहबी तालीम के नाम पर सीमित रखने, उसकी बु्द्धि के विकास को षड्यंत्रपूर्वक रोकने का प्रयास हो, तब जरूर देश के हर नागरिक को अपने पंथ, रिलीजन, धर्म और मजहब से ऊपर उठकर इसे आड़े हाथों लेने में गुरेज नहीं करना चाहिए। देश में एक बार फिर ऐसे ही हालात बनते दिखे हैं। दरअसल, पिछले कुछ वर्षों में ‘मदरसा शिक्षा’ को लेकर देश में होनेवाले विमर्श ने जोर पकड़ा है। इसे लेकर कई विचारधाराएं भी हैं। बच्‍चों का विषय होने पर स्‍वभाविक है कि सहमति के बिन्‍दु खोजना होंगे, लेकिन बात जब ‘जमीयत उलेमा-ए-हिंद’ जैसी संस्‍थाओं की आ जाए। ये इस्‍लामिक संस्‍थाएं सरकारी जिम्‍मेदारियों से बचने की सलाह दें और देश के भविष्‍य को मजहब के नाम पर सीमित रखने की कोशिश करें, तब फिर तमाम प्रश्‍न खड़े होते हैं कि आखिर हम यह कैसा भारत गढ़ रहे हैं?

अब सामने आए इस नए मामले में ‘जमीयत उलेमा-ए-हिंद’ का निर्णय कि वह गैर मान्यता प्राप्त मदरसों को जबरन बंद कराए जाने के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाएगी विवाद का विषय बन गया है। इसके विरोध में कई आवाजें देशभर से उठी हैं, जो ‘जमीयत’ के इस कदम को संविधान और मुस्‍लिम विरोधी बता रही हैं। राष्‍ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्‍य एवं पूर्व में राष्‍ट्रीय बाल संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के अध्‍यक्ष रहे प्रियंक कानूनगो कहते हैं, “इस संगठन के मौलवी नहीं चाहते हैं कि बच्‍चे आधुनिक शिक्षा से जुड़ें। कट्टर पंथ को कायम रखने के लिए वे चाहते हैं कि कौम के बच्‍चे आधुनिक पढ़ाई से मरहूम रहें। कोई भी धर्म नहीं कहता कि बच्‍चों को इल्‍म से दूर रखा जाए। लेकिन यहां जमीयत की गैर मान्‍यता प्राप्‍त मदरसों को चलाने की जिद वास्‍तव में यह बताती है कि ये वही लोग हैं जो पसमांदा मुसलमानों एवं अन्‍य कई मुसलमानों को गरीबी में रखकर अपना राज कायम रखना चाहते हैं।”

प्रियंक कानूनगो मदरसा शिक्षा के संबंध में एनसीपीसीआर के अपने पुराने अनुभव को साझा करते हुए बताते हैं, “पिछले साल मदरसा एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट का जो फैसला आया है, उसमें न्‍यायालय ने भी अपने कंक्लूजन में ये बात बड़ी स्पष्टता से कही है कि राइट टू एजुकेश एक्ट, जो आर्टिकल 21(ए) संविधान के द्वारा बच्चों को दिया गया है, उसकी समानता के साथ ही धार्मिक शिक्षा दी जाएगी। ऐसे में स्‍वभाविक है कोई भी सरकार ये अवश्‍य देखेगी कि बच्चे स्कूल जा रहे हैं अथवा नहीं। मुस्‍लिम बच्‍चे दीनी तालीम लें कोई नहीं रोक रहा, लेकिन अवैध मदरसों के नाम पर उन्‍हें आधुनिक शिक्षा जो उन बच्‍चों का अपना मौलिक अधिकार भी है, उससे कैसे दूर किया जा सकता है? यदि उन्‍हें आधुनिक शिक्षा से दूर किया गया है या गैर मान्‍यता प्राप्‍त मदरसों के माध्‍यम से किया जा रहा है तो स्‍वभाविक है, कोई भी राज्‍य सरकार होगी वह इन मदरसो पर कार्रवाई करेगी।”

कानूनगो ने यह भी बताया कि राष्‍ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग में रहते हुए उन्‍होंने पाया कि मान्‍यता प्राप्‍त मदरसे तक में आरटीई एक्ट 2009 के अनुरूप सिलेबस चलता हुआ नहीं मिला है। मदरसों में राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद द्वारा अनिवार्य योग्य शिक्षकों की कमी है। धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों की अनदेखी करते हुए ये बड़ी तादात में पाया गया कि वहां हिंदू और अन्य गैर-मुस्लिम बच्चे इस्लामी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। यह हाल जब मान्‍यता प्राप्‍त मदरसों का हो सकता है, तब गैर मान्‍यता प्राप्‍त या अवैध मदरसों को चलाए रखने की अनुमति कोई भी लोककल्‍याणकारी राज्‍य सरकार कैसे दे सकती है।

सर्वोच्च न्यायालय की अधिवक्ता एवं राष्ट्रीय जागरण अभियान की संस्थापक व राष्ट्रीय समन्वयक सुबुही खान ‘जमीयत उलेमा-ए-हिंद’ की गैर मान्यता प्राप्त मदरसों के मामले को लेकर कोर्ट जाने के निर्णय को अनुचित ठहराती हैं। वे कहती हैं, “यह दर्भाग्‍य है भारत में मुसलमानों का कि उन्‍हें ऐसी लीडरशिप नहीं मिली, जो अपने ही बच्‍चों का और अपनी कौम के भविष्‍य की चिंता करे। किसी भी बच्‍चे का दिमाग और उसका चरित्र बचपन में दी गई शिक्षा से ही बनता है। लेकिन यहां उन्‍हें बचपन में ही मुख्‍यधारा से दूर करने के प्रयास हुए हैं और अधिकांश बच्‍चों को मदरसा शिक्षा से जोड़ दिया गया। जिसमें कि ‘जमीयत उलेमा-ए-हिंद’ का गैर मान्‍यता प्राप्‍त मदरसों को संचालित करने का समर्थन करना बहुत गलत है, क्‍योंकि जिसकी मान्‍यता नहीं या जो मान्‍यता लेना नहीं चाहते, स्‍वभाविक है उसमें बहुत अवैध काम होते हैं। ऐसे स्‍थलों पर बच्‍चों के साथ कई अवराध होते हैं और उन्‍हें शिक्षा के नाम पर कट्टरवादी बना दिया जाता है।”

सुबुही का कहना है, “इन स्‍थलों पर न सरकार का कोई हस्‍तक्षेप रहता है और न पढ़े लिखे मुस्‍लिम समाज का। जबकि जो मान्‍यता प्राप्‍त मदरसे हैं, उन्‍हें सरकार से आर्थ‍िक मदद भी मिलती है। दूसरी ओर आज हमारी सरकारें मदरसों को मॉर्डेनाइज करने की दिशा में काम कर रही हैं। एनसीईआरटी का सिलेबस भी लागू करने की बात कही जा रही है। स्‍वभाविक है सरकार की नजर होने पर वहां अपराध होने की संभावना कम रहेगी। वास्‍तव में जो लोग अवैध मदरसों के नाम पर अपनी दुकानें चलाते हैं, अवैध धंधे करते हैं उन्‍हें ही गैर मान्‍यता प्राप्‍त मदरसों पर की जा रहे सरकारी एक्‍शन को लेकर परेशानी हो सकती है। कोई भी मुसलमानों का नेता जो बच्‍चों का भला चाहेगा वह यही इच्‍छा रखेगा कि अवैध मदरसे नहीं चलना चाहिए।’’

इसी तरह से इस्‍लाम के विद्वान जमात उलेमा ए हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना सुहैब कासमी गैर मान्‍यता प्राप्‍त मदरसों की वकालत करने पर जमीयत उलेमा-ए-हिंद संगठन को बुरी तरह घेरते हैं। मौलाना सुहैब कासमी ने कहा, “ये वह संस्‍था है जो पिछले 70 सालों से मुसलमान को देश के अंदर नेगेटिव अंदाज में तैयार कर रही है। आप इस संस्था के प्रदेशों के अध्यक्षों से बात कीजिए, आपको पता चल जाएगा कि ये मुसलमानों का इस्तेमाल अपने स्‍वार्थ के तौर पर करते चले आ रहे हैं। इनकी एक ही सोच है कि हिन्‍दुस्तान में मुसलमान परेशान दिखेगा तो इन्हें विदेशों से फंडिंग मिलती रहेगी। यह दुनिया के देशों में जाकर यही बताते हैं कि भारत में मुसलमान बहुत परेशान हैं, उनसे मस्जिद छीनी जा रही हैं। मदरसे बंद कि जा रहे हैं, हम उनको पढ़ा रहे हैं, इसलिए आप हमें पैसा दीजिए। ये पूरा ड्रामा चंदेवाजी और जकात इकट्ठा करने के लिए हो रहा है।”

मौलाना सुहैब का कहना है, “ये वही लोग हैं, जिन्‍होंने कई मदरसों को कभी रजिस्‍टर्ड नहीं होने दिया। मुसलमानों को पहले भी और आज भी यह कहकर भड़काया कि रजिस्टर करेंगे तो सरकार इन पर कब्जा कर लेगी। जो रजिस्टर्ड हुए हैं उनमें भी यह लोग यही कहते रहे और समझाने का प्रयास करते हैं कि तुम्हें रामायण और गीता पढ़ाई जाएगी। तुम्हारा ईमान छीन लिया जाएगा, इसलिए सरकार से दूर रहो। यदि यह दूर रहेंगे तो हिसाब नहीं देना पड़ेगा। यह सारा मामला सरकार को हिसाब नहीं देने का है।”



सुहैब कासमी इतना कहकर ही नहीं रुकते, वे बहुत स्‍पष्‍टता से कहते हैं कि ‘जमीयत उलेमा-ए-हिंद’ और पर्सनल लॉ बोर्ड इनके जो भी मौलवी हैं, उनका एक गठजोड़ बन गया है। ये सभी इस्‍लाम की सेवा के नाम पर अलग-अलग संस्‍थान चला रहे हैं, और इन संस्‍थाओं के माध्‍यम से यह पूरी दुनिया को दिखाते हैं कि देखो; भारत देश के अंदर मुसलमान पिट रहा है। यह भारत की विश्‍व में नकारात्‍मक छवि बनाने का काम करते हैं ताकि अधिक से अधिक चंदा इकट्ठा किया जा सके। अभी भी यह दुनिया को यही दिखा रहे हैं । एक तरफ हमारे संसदीय प्रतिनिधिमंडल (डेलिगेशन) पूरी दुनिया में बात कर रहे हैं और पाकिस्तान की सच्चाई, उसके आतंकवाद को बेनकाब कर रहे हैं तो दूसरी तरफ इन संगठनों के लोग घूम रहे हैं जो यह बता रहे हैं कि मुसलमान भारत में मारा जा रहा है, प्रताड़ि‍त है, वह बर्बाद हो गया।

वे यह भी सवाल खड़ा करते हैं कि ‘जमीयत उलेमा-ए-हिंद’ ने ऑपरेशन सिंदूर की सफलता पर क्‍या भारत भर में जश्‍न मनाया? इन्‍होंने कोई बड़ा कार्यक्रम किया हो तो बता दो? वास्‍तव में इन्‍होंने भारतीय सैनिकों के सम्‍मान में कोई भी बड़ा आयोजन नहीं किया, क्‍योंकि इनका ये मानना है कि यदि ऐसा करेंगे तो पाकिस्तान, इंग्लैंड अमेरिका, दुबई, कतर जैसे कई देशों से भारत में मुसलमान प्रताड़ना के नाम पर इन्‍हें जो रुपया देते हैं, वह रुपया नहीं देंगे। इनका आरोप है कि “आज जो मुसलमान की हालत है इसका कारण जमीन उलेमा ए हिंद जैसी तंजीमें हैं । जिन्होंने देश के आम मुसलमान को नकारात्‍मकता दिखाई और हिंदू भाइयों को अपना कौमी दुश्मन बता रखा है । ये आज इसीलिए ही गैर मान्‍यता प्राप्‍त मदरसों का समर्थन करते नजर आते हैं ताकि मौलवी मदरसा संचालन के लिए चंदा मांगता रहे, सड़कों पर जलील होता रहे और इन सभी के आगे हाथ फैलाता रहे।”

इस संबंध में मप्र राज्‍य बाल संरक्षण आयोग (एससीपीसीआर) की डॉ. निवेदिता शर्मा का कहना है, “उनके कार्यकाल में इस मामले से जुड़े उनके अनुभव अच्‍छे नहीं। नियमित तौर पर शिक्षण संस्‍थाओं में निरीक्षण के दौरान मदरसों में जाना हुआ है। बहुत बुरी हालत में है मदरसे। अब तक एक भी मदरसा निरीक्षण में ऐसा नहीं मिला, जिसे बच्‍चों के हित में सुविधाओं के हिसाब से बेहतर कहा जाता। अवैध मदरसों के लिए तो क्‍या बोलें, जो शासन के ध्‍यान में भी हैं, मदरसा बोर्ड से जिन्‍होंने मान्‍यता ले रखी है, वे भी अपने यहां बच्‍चों को नियमानुसार सुविधाएं मुहैया नहीं करा रहे।” उन्‍होंने कहा, “मदरसों में ऐसे बच्चों की एंट्री है, जो कभी मदरसा पढ़ने तक नहीं आते हैं। इसके साथ ही उन बच्‍चों के नाम शासन की मान्‍यता प्राप्‍त बोर्ड परीक्षा में लिखवा दिए गए हैं, जोकि कभी परीक्षा देने आएंगे ही नहीं। उम्र में हिसाब से 23 से 28 साल वालों को भी कक्षा आठ का विद्यार्थी बता दिया जाता है। जानकारी मांगने पर उनकी सही जानकारी नहीं दी जाती। हाल में ही पहली से आठ तक की कक्षाएं संचालित होना पाया जाता है। बालिकाओं और बालक दोनों के लिए सिर्फ एक ही शौचालय कई जगह मिला। बड़ी संख्‍या में गैर हिन्‍दू बच्‍चों की एंट्री मिली है। उन्‍हें दीन-ए-तालीम उनके माता-पिता की अनुमति के बिना दी जा रही है। उसमें भी जो पढ़ाया जा रहा है, वह भी बहुत आपत्‍त‍िजनक है।”

वे पूछती हैं, “हिन्‍दू बच्‍चों को ‘तालीमुल इस्‍लाम’ जैसी किताबें क्‍यों पढ़ाना? इस किताब में लिखा है कि ‘‘ईमान लाया मैं अल्‍लाह पर और उसके फरिश्‍तों पर और उसकी किताबों पर और उसके रसूलों पर और कियामत के दिन पर’’ इसी किताब में लिखा है ‘जो लोग अल्‍लाह को नहीं मानते उन्‍हें काफिर कहते हैं’ फिर एक जगह लिखा है, जो लोग खुदा तआला के सिवा और चीजों की पूजा करते हैं, ऐसे लोगों को काफिर और मुश्‍रिक कहते हैं।, मुश्‍रिकों को बख्‍शा नहीं जाएगा।’इसी प्रकार की अन्‍य पुस्‍तकें भी हैं जिनमें बहुत कुछ वह लिखा हुआ है जो बच्‍चों के मन पर कम से कम समरस समाज बनाने के लिए तो कोई सकारात्‍मक प्रभाव नहीं डालतीं, बल्‍कि उन्‍हें कट्टरता से भर दे रही हैं।”

डॉ. निवेदिता शर्मा यह भी पूछती हैं, “क्‍या यह शिक्षा हिन्‍दू या अन्‍य किसी भी बच्‍चे को दी जानी चाहिए? कि जो खुदा को नहीं मानेंगे वे बख्‍शे नहीं जाएंगे। यानी जो खुदा को माने वही अच्‍छे और सच्‍चे हैं, बाकी गलत।” जावरा के पास उमठ पालिया गांव के एक अवैध मदरसे आता-ऐ-रसूल का जिक्र करते हुए उन्‍होंने बताया कि “जब बच्‍चों से सवाल किए तो उनका कहना था कि वे कुरान पढ़ने से जन्नत की उम्मीद में यहां आए हैं। वह कुरान पढ़ने से ही मिलेगी, स्कूल जाने से नहीं। ये बच्चे यूपी, राजस्थान और मध्य प्रदेश के अलग-अलग जिलों से थे। यह कई जगह देखा गया है कि मदरसे में बच्चों को सिर्फ मजहबी शिक्षा दी जा रही थी, और कोई भी बच्चा स्कूल नहीं जाता। यह शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन है। इसलिए बाल संरक्षण आयोग को मदरसों की मनमानी पर एतराज है। जिसमें कि गैर मान्‍यता प्राप्‍त या अवैध मदरसे तो बिल्‍कुल ही बंद हो जाने चाहिए। हां, यदि कौमी तालीम के हिसाब से मदरसा शिक्षा देना अनिवार्य ही है, तो इस प्रकार की दो कि बच्‍चा शिक्षा लेने के बाद योग्‍य बन सके। अन्‍यथा मदरसा शिक्षा के नाम पर बच्‍चों का भविष्‍य खराब मत करो, क्‍योंकि यही देश का आनेवाला कल हैं।”

हिन्‍दुओं का सबसे बड़ा सामाजिक संगठन विश्‍व हिन्‍दू परिषद (विहिप) भी इसके पक्ष में नहीं । विहिप के राष्‍ट्रीय प्रवक्‍ता विनोद बंसल का कहना है, ‘‘देश के अनेक मदरसों के अंदर पिछले चार दशकों में अतिवाद, कट्टरता, आतंकवाद और देश विरोधी मानसिकता को बल प्रदान किया गया है, यह बहुत आपत्‍त‍ि एवं विरोध करने योग्‍य है। अब तक कई मदरसों में बम बनाने की घटनाएं, आतंकवादियों को पनाह देने की घटनाएं, भारत विरोधी जहर उगलने की घटनाएं घट चुकी हैं। अगर आप मदरसों को शिक्षा का केंद्र कहते हो और वहां पर इस तरह की घटनाएं होती हैं तो निस्‍संदेह यह भारत के लिए ही नहीं विश्‍व के लिए भी खतरनाक है। वास्‍वत में इस प्रकार के सभी शिक्षण संस्‍थान या मानसिकता के केंद्रों को ध्‍वस्‍त करना किसी भी सरकार की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए।”

साथ ही विनोद बंसल का कहना यह भी है, “जो गैर मान्‍यता प्राप्‍त मदरसों का समर्थन कर रहे हैं, उन्‍हें समझना होगा कि सरकार को असीमित अधिकार हैं, जहां उसे लगेगा कि देश विरोधी गतिविधि हो रही हैं, तो उसे रोकने, टोकने, उसे हटाने या बंद करने का पूरा अधिकार सरकारों के पास सुरक्षित है।भले ही फिर अल्‍पसंख्‍यकों के नाम पर देश के मुसलमानों को संविधान के अनुच्‍छेद 29 और 30 में अनेक असीमित अधिकार मिले हों, जो इस देश के बहुसंख्‍यकों के पास भी नहीं। फिर भी सरकारों के अधिकार देश हित में सबसे ऊपर हैं।” विहीप के राष्‍ट्रीय प्रवक्‍ता बंसल का का मानना है कि “अब समय आ गया है कि इन्‍हें मिले संविधान के विशेषाधिकार अनुच्‍छेद 29 और 30 की समीक्षा की जाए। इसकी आड़ लेकर इनका बार-बार अदालतों का दरवाजा खटखटाना उचित नहीं, क्‍योंकि कई विषयों में ये पहले से ही जानते हैं कि जो विषय उठाया जा रहा है, वह अनुचित है। यहां ‘जमीयत उलेमा-ए-हिंद’ की गैर मान्‍यता प्राप्‍त मदरसों को लेकर कोर्ट जाने को भी आप इसी संदर्भ में समझें।”

उल्‍लेखनीय है कि मदरसों का ये मामला इसलिए भी फिर विवाद का विषय बन रहा है, क्‍योंकि जमीयत उलेमा-ए-हिंद आज उन तमाम अवैध मदरसों (गैर मान्‍यता प्राप्‍त) को बनाए रखने की वकालत करती नजर आ रही है, जिनका राज्‍य या केंद्र की शिक्षा व्‍यवस्‍था में कोई अस्‍तित्‍व ही नहीं और न कोई शिक्षा की शासकीय व्‍यवस्‍था में कहीं कोई पंजीयन है। जमीयत का आरोप है कि गैर मान्यता प्राप्त इस्लामी शिक्षण संस्थानों को बंद करना संविधान के खिलाफ है। मौलाना काब रशीदी का कहना है कि उत्तर प्रदेश में नेपाल से सटे बहराइच, श्रावस्ती, महराजगंज, सिद्धार्थनगर, बलरामपुर, लखीमपुर खीरी और पीलीभीत जिलों में प्रशासन द्वारा अवैध कब्जे और बिना मान्यता के संचालित किए जाने का आरोप लगाते हुए 200 से ज्यादा मदरसों को बंद करा दिया है।

दूसरी आरे देखने में भी यही आ रहा है कि उत्तर प्रदेश की योगी सरकार, उत्तराखंड की पुष्कर सिंह धामी सरकार लगातार अवैध मदरसों पर नकेल कस रही है। इसी तरह का दृष्‍य मध्‍य प्रदेश में डॉ. मोहन यादव की सरकार में वहां राज्‍य बाल संरक्षण आयोग की सक्रियता से कई बार सामने आ चुका है। मुख्‍यमंत्री डॉ. यादव भी बच्‍चों के भविष्‍य को लेकर होनेवाली खिलवाड़, शिक्षा की गुणवत्‍ता और अवैध मदरसों को लेकर सख्‍त दिखाई देते हैं। वहीं, इन दिनों देश के कुछ अन्‍य राज्‍यों में भी अवैध मदरसों को पर कार्रवाई होती दिखी है। उन पर सख्‍ती बरती जा रही है और नोटिस दिए जा रहे हैं। सवाल यहां जमीयत जैसी संस्‍थाओं पर कई अन्‍य भी उभरकर सामने आए हैं, आखिर, ये मुसलमानों की पैरोकार संस्‍था अपने ही मजहबी बच्‍चों के जीवन के साथ इस तरह का खिलवाड़ कैसे कर सकती हैं? जिसमें कि उन्‍हीं के समाज से बच्‍चे आधुनिक शिक्षा लेने से दूर रह जाते हैं, फिर यही संस्‍थाएं मुसलमानों के पिछड़ेपन के लिए तत्‍कालीन सरकारों को दोषी ठहराती दिखती हैं।

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