लखनऊ। पहले केला का अर्थ होता था, भुसावल वाला। वहां का केला ही मिठास के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन अब उप्र, खासकर पूर्वांचल में भी किसानों का केले की खेती के प्रति रुझान काफी बढ़ा है। गाजीपुर, आजमगढ़ और मऊ के किसानों में केले की हाईब्रिड वेराइटी जी-9 प्लस केले की खेती का प्रचलन ज्यादा है। इस केले में मिठास के साथ ही उपज भी अच्छी है। केले की खेती में किसान एक बीघा में लगभग डेढ़ लाख रुपये शुद्ध बचत कर लेता है।
उद्यान विभाग के अनुसार वर्तमान में उत्तर प्रदेश में करीब 72,000 हेक्टेयर रकबे में केले की खेती हो रही है। कुल उत्पादन 3.372 लाख मिट्रिक टन और प्रति हेक्टेयर उपज 45.73 मिट्रिक टन है। एक बिग्घा (पक्का बीघा) केले की खेती के लिए आठ सौ से 1000 पौधे की जरूरत होती है। यदि आपको एक बार ही उपज लेनी है तो इसको 1000 पौधे लगाना उपयुक्त होगा, लेकिन यदि दो बार उपज लेनी है तो आठ सौ पौधे क्यारियों की मेढ़ी पर लगाया जाता है।
पूर्वांचल में अधिकतर पौधे महाराष्ट्र से मंगाये जा रहे हैं। हाइब्रिड वेराइटी के पौधों में जी-9 इजरायल का शोधित पौधा है। इसको मंगाने में एक पौधे पर लगभग 20 रुपये खर्च आता है। इसकी उपज लेने तक का कुल खर्च लगभग सौ रुपये पड़ जाएगा। एक पौधे पर 25 किलो की औसत उपज है अर्थात एक बीघा में औसत खर्च 80 हजार रुपये है और आमदनी एक बीघा में लगभग 240000 रुपये होगा। अर्थात शुद्ध बचत किसान को लगभग डेढ़ लाख रुपये हो जाएंगे।
प्रदेश के पूर्वांचल, अवध आदि क्षेत्रों के कुशीनगर, गोरखपुर, देवरिया, बस्ती, महाराजगंज, अयोध्या, गोंडा, बहराइच, अंबेडकरनगर, बाराबंकी, प्रतापगढ़, अमेठी, कौशाम्बी, सीतापुर और लखीमपुर जिलों में केले की खेती होती हैं।
इस संबंध में उप निदेशक उद्यान अनीस श्रीवास्तव ने बताया कि केले की खेती किसानों को दोगुनी आमदनी का सबसे बेहतर खेती है। वैसे तो फूलों की खेती भी काफी फायदा देती है, लेकिन केले की खेती से किसान का खेत साल भर हरा-भरा रहता है। वर्तमान में बहुत किसान एक खेत में केले के साथ ही बीच-बीच में गोभी आदि सब्जियों की भी खेती कर देते हैं। इससे उन्हें काफी बचत होती है।
केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान रहमानखेड़ा, लखनऊ से मिले आंकड़ों के अनुसार पूरे भारत में लगभग 3.5 करोड़ मीट्रिक टन केले का उत्पादन होता है। देश में केले की फसल का रकबा करीब 9,61,000 हेक्टेयर है। केला आर्थिक के साथ धार्मिक और पोषण के लिहाज से भी बेहद महत्वपूर्ण है। कोई भी धार्मिक अनुष्ठान केले और इसके पत्ते के बिना पूरा नहीं होता। केला रोज के नाश्ते के अलावा व्रत में भी खाया जाता है। केले के कच्चे, पके फल और तने से निकलने वाले रेशे से ढेर सारे सह उत्पाद बनने लगे हैं।
बीएचयू के पंचकर्म विभाग के विभागाध्यक्ष डा. जे.पी. सिंह के अनुसार केला पोषण के लिहाज से भी खासा महत्त्वपूर्ण है। अन्य पोषक तत्वों के अलावा इसमें भरपूर मात्रा में पोटेशियम तो होता ही है, यह कार्बोहाइड्रेट, फाइबर, एंटीऑक्सीडेंट और विटामिन बी-6 का भी अच्छा स्रोत है। पोटेशियम हृदय की सेहत, विशेष रूप से रक्तचाप प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण है। पोटेशियम युक्त आहार रक्तचाप को प्रबंधित करने और उच्च रक्तचाप के जोखिम को कम करने में सहायक हो सकता है। यह हृदय रोग का जोखिम 27 फीसद तक कम कर सकता है।