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कुमाऊनी रामलीला का इतिहास : 1830 में कुमाऊं नहीं मुरादाबाद से हुई कुमाऊनी रामलीला की शुरुआत


- नृत्य सम्राट उदयशंकर, महामना मदन मोहन मालवीय व भारत रत्न पं. गोविंद बल्लभ पंत का भी रहा है कुमाऊनी रामलीला से जुड़ाव

नैनीताल। उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में होने वाली कुमाऊनी रामलीला की मौलिकता, कलात्मकता, संगीत एवं राग-रागिनियों में निबद्ध होने के कारण देशभर में अलग पहचान है। खास बात यह है कि कुमाऊनी रामलीला की शुरुआत कुमाऊं के किसी स्थान के बजाय 1830 में उत्तर प्रदेश के रुहेलखंड मंडल के मुरादाबाद से होने के प्रमाण मिलते हैं। वहीं, 1943 में नृत्य सम्राट उदयशंकर और महामना मदन मोहन मालवीय के साथ भारत रत्न पं. गोविंद बल्लभ पंत जैसे लोगों का भी कुमाऊनी रामलीला से जुड़ाव रहा है।

कुमाऊं में रामलीला के आयोजन की शुरुआत 1860 में अल्मोड़ा के बद्रेश्वर मंदिर में हुई थी, जिसका श्रेय तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर देवी दत्त जोशी को जाता है। बताया जाता है कि देवी दत्त जोशी ने ही 1830 में उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में ऐसी ही कुमाऊनी रामलीला कराने की शुरुआत की थी। इसके बाद 1880 में नैनीताल के दुर्गापुर-वीरभट्टी में नगर के संस्थापकों में शुमार मोती राम शाह के प्रयासों से कुमाऊनी रामलीला कराने की शुरुआत हुई। आगे 1890 में बागेश्वर में शिवलाल साह तथा 1902 में देवी दत्त जोशी ने ही पिथौरागढ़ में रामलीला की शुरुआत की।

दुर्गापुर नैनीताल का बाहरी इलाका है। इस लिहाज से नैनीताल शहर में 1912 में पहली बार नैनीताल शहर के मल्लीताल में कृष्णा साह ने अल्मोड़ा से कलाकारों को लाकर रामलीला का मंचन करवाया जबकि स्थानीय कलाकारों द्वारा 1918 में यहां रामलीला प्रारंभ हुई। भारत रत्न पं. गोविंद बल्लभ पंत 1903 में तल्लीताल रामलीला कमेटी के प्रथम अध्यक्ष रहे। वर्ष 1907 से रामलीला को लिखित रूप में सर्वसुलभ बनाने के प्रयासों के अंतर्गत रामलीला नाटकों को प्रकाशित करने का वास्तविक कार्य प्रारंभ हुआ। पं. रामदत्त जोशी, केडी कर्नाटक, गांगी सााह, गोविंद लाल साह, गंगाराम पुनेठा, कुंवर बहादुर सिंह आदि के रामलीला नाटक प्रकाशित हुए। 1910 के आसपास भीमताल में रामलीला का मंचन प्रारंभ हुआ।

पारसी थियेटर के साथ नौटंकी, ब्रज की रास तथा कव्वाली पार्टियों का भी दिखता है प्रभाव

कुमाऊं की रामलीला में बोले जाने वाले संवादों, धुन, लय, ताल व सुरों में पारसी थियेटर, नौटंकी, ब्रज की रास तथा कव्वाली पार्टियों का भी काफी प्रभाव दिखता है, जो इसे अन्य स्थानों की रामलीलाओं से अलग करता है। रामलीला के दौरान राम-केवट संवाद, वासुकी विजय व श्रवण कुमार नाटकों में पारसी थियेटर की संवादों को लंबा खींचकर या जोर देकर बोलने की झलक नैनीताल की रामलीला की एक अलग विशिष्टता है। यह संभवतया यहां अंग्रेजी राज के दौरान अंग्रेजों के भी रामलीला में शामिल होने के प्रभाव के कारण है।

इसके अलावा कुमाऊनी रामलीला में पात्रों के संवादों में आकर्षण व प्रभावोत्पादकता लाने के लिए कहीं-कहीं स्थानीय बोल-चाल के व नेपाली के सरल शब्दों के साथ ही उर्दू की गजल का सम्मिश्रण भी दिखता है जबकि रावण के दरबार में कुमाऊनी शैली के नृत्य का प्रयोग किया जाता है। कुछ जगह अब फिल्मी गाने भी लेने लगे हैं। संवादों में गायन को अभिनय की अपेक्षा अधिक तरजीह दी जाती है। कुमाऊनी रामलीला में नारद मोह, अश्वमेध यज्ञ, कबन्ध-उद्धार, मायावी वध व श्रवण कुमार आदि के प्रसंगों का मंचन भी किया जाता है।

संगीत पक्ष भी मजबूत

कुमाऊनी रामलीला में रामचरितमानस के दोहों व चौपाईयों पर आधारित गेय संवाद हारमोनियम की सुरीली धुन और तबले की गमकती गूंज के साथ दादर, कहरुवा, चांचर व रुपक तालों में निबद्ध रहते हैं। कई जगहों पर गद्य रूप में संवादों का प्रयोग भी होता है। रामलीला मंचन के दौरान नेपथ्य से गायन तथा अनेक दृश्यों में आकाशवाणी की उदघोषणा भी की जाती है। रामलीला प्रारंभ होने के पूर्व सामूहिक स्वर में राम वंदना 'श्रीरामचंद्र कृपालु भजमन' का गायन किया जाता है। दृश्य परिवर्तन के दौरान खाली समय में ठेठर (विदूशक-जोकर) अपने हास्य गीतों व अभिनय कला से दर्शकों का मनोरंजन करता है।

रामलीला अभिनय की पाठशाला भी

कुमाऊनी रामलीला कलाकारों के लिए अभिनय की पाठशाला भी साबित होती रही है। कोरस गायन, नृत्य आदि में कुछ महिला पात्रों के अलावा अधिकांशतया सभी पात्र पुरुष होते हैं लेकिन नैनीताल में मल्लीताल की रामलीला में राम जैसे मुख्य एवं पुरुष पात्रों को भी बालिकाओं द्वारा निभाने की मिसाल मिलती है। वहीं, सूखाताल सहित अन्य जगहों पर बालिकाएं भी स्त्री पात्रों को निभा रही हैं। कुमाउनी रामलीला दिवंगत सिने अभिनेता निर्मल पाण्डेय सहित अनेक कलाकारों की अभिनय की प्रारंभिक पाठशाला भी रही है।

नृत्य सम्राट उदयशंकर व मदन मोहन मालवीय ने भी दिया योगदान

नृत्य सम्राट उदयशंकर के कल्चरल सेंटर ने कुमाऊनी रामलीला में पंचवटी का सेट लगाकर उसके आसपास शेष दृश्यों का मंचन तथा छायाओं के माध्यम से फंतासी के दृश्य दिखाने करने जैसे प्रयोग किए, जिनका प्रभाव अब भी कई जगह रामलीलाओं में दिखता है। वहीं, महामना मदन मोहन मालवीय की पहल पर प्रयाग के गुजराती मोहल्ले में भी सर्वप्रथम कुमाऊनी रामलीला का मंचन हुआ था।

नवरात्र के अलावा गर्मियों में भी होती है रामलीला

सामान्यतया रामलीला का मंचन शारदीय नवरात्र के दिनों में रात्रि में होता है लेकिन जागेश्वर में गर्मियों में और हल्द्वानी में दिन में भी रामलीला मंचन होने के उदाहरण मिलते हैं। नैनीताल के साथ अल्मोड़ा के ‘हुक्का क्लब’ की रामलीलायें काफी प्रसिद्द हैं। हल्द्वानी में उत्तराखंड सरकार के कैबिनेट मंत्री बंशीधर भगत और राज्य के वरिष्ठ पीसीएस अधिकारी हरवीर सिंह द्वारा भी रामलीला में दशरथ व जनक के किरदार निभाए गए हैं।

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