हिम्मतनगर। देश को प्रधानमंत्री देने से लेकर लोकप्रिय सीरियल
रामायण के पात्र को लोकसभा में भेजने वाला साबरकांठा लोकसभा सीट इस बार
सुर्खियों में है। इसकी मुख्य वजह भाजपा के उम्मीदवार भीखा सिंह राठौड़ का
चुनाव लड़ने से मना करना है। राठौड़ के ऐसा करने से पसोपेश में पड़ी भाजपा के
लिए दूसरा उम्मीदवार खोजने के सिवाय कोई विकल्प नहीं था। भाजपा ने अब यहां
से महिला उम्मीदवार शोभना बेन बारैया को मैदान में उतारा है। बारैया को भी
स्थानीय कार्यकर्ता आयातीत बता कर विरोध कर रहे हैं, दूसरी ओर कांग्रेस ने
यहां से पूर्व मुख्यमंत्री अमर सिंह चौधरी के पुत्र डॉ. तुषार चौधरी को
उम्मीदवार बनाकर कड़ी टक्कर देने की रणनीति बनाई है।
आदिवासी
बाहुल्य साबरकांठा लोकसभा सीट अंतर्गत 7 विधानसभा क्षेत्र खेड़ब्रह्मा,
भिलोडा, हिम्मतनगर, इडर, मोडासा, बायड और प्रांतिज शामिल है। इसमें बायड और
खेड़ब्रह्मा को छोड़ कर बाकी सभी 5 सीटों पर भाजपा के विधायक हैं।
खेड़ब्रह्मा से कांग्रेस के तुषार चौधरी और बायड से निर्दलीय नरेन्द्र कुमार
झाला ने पिछली विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की थी। इस लोकसभा सीट पर पहली
महिला सांसद होने का गौरव भी कांग्रेस नेता डॉ. तुषार चौधरी की बहन निशा
चौधरी को है। वे इस सीट से एक बार सांसद रह चुकी हैं। इस बार उनके भाई
तुषार चौधरी कांग्रेस की टिकट पर मैदान में हैं।
1951 से हुए अब तक हुए चुनाव में कांग्रेस 9 बार जीती
साबरकांठा
लोकसभा सीट पर पहली बार 1951 में चुनाव हुआ था। इस समय कांग्रेस से
गुलजारी लाल नंदा ने उम्मीदवारी की थी। उनके सामने हिम्मतनगर के महाराजा
हिम्मत सिंह चुनाव मैदान में थे। इस चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार और देश
के पूर्व प्रधानमंत्री गुलजारीलाल नंदा चुनाव जीते थे। वे इस सीट से लगातार
तीन बार चुनाव जीते थे। वर्ष 1951 से वर्ष 1962 तक वे इस सीट से सांसद
चुने जाते रहे थे। वर्ष 1966 में लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद वे 13
दिनों के छोटे अंतराल के लिए देश के प्रधानमंत्री बने थे। वे अर्थशास्त्री
थे और श्रमिकों के लिए उन्होंने कई महत्वपूर्ण काम किए। वर्ष 1977 में
उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। वे 1962-63 में केन्द्र सरकार
में श्रम और रोजगार मंत्री और 1963-66 तक गृह मंत्री थे।
इस सीट को
रामायण सीरियल में रावण का जीवंत पात्र निभाने वाले अरविंद त्रिवेदी की वजह
से भी जाना जाता है। अरविंद त्रिवेदी साबरकांठा के कुकरवाडा के रहने वाले
थे। अरविंद त्रिवेदी वर्ष 1991 में भाजपा की टिकट पर साबरकांठा से सांसद
चुने गए थे। हालांकि 1996 में भाजपा ने अरविंद त्रिवेदी को दोबारा टिकट
दिया, लेकिन इस बार वे कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री अमर सिंह चौधरी की
पुत्री निशा चौधरी से हार गए। निशा चौधरी इस सीट से पहली महिला सांसद चुनी
गई थी। वे 1998 और 1999 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस की टिकट पर इस सीट
से जीतने में सफल रहीं।
वर्ष 2001 भाजपा ने अरविंद त्रिवेदी के भाई
और गुजराती फिल्मों के अभिनेता उपेन्द्र त्रिवेदी को टिकट दिया, लेकिन इस
बार कांग्रेस ने दिग्गज नेता मधुसूदन मिस्त्री को मैदान में उतारा। चुनाव
परिणाम में मधुसूदन मिस्त्री जीत गए। इस सीट से दो बार राजघरानों से
उम्मीदवारी की गई, लेकिन दोनों ही बार राजघराने की हार हुई। पहली बार
महाराजा हिम्मत सिंह ने निर्दलीय उम्मीदवारी की थी तो कांग्रेस के
उम्मीदवार व पूर्व प्रधानमंत्री गुलजारीलाल नंदा ने उन्हें हरा दिया। इसके
बाद वर्ष 1977 में राजपरिवार से राजेन्द्र सिंह कांग्रेस की टिकट पर चुनाव
लड़े थे, इस चुनाव में बीएलडी के एच एम पटेल की जीत हुई थी।
साबरकांठा
सीट का इतिहास देखें तो कांग्रेस के उम्मीदवार गुलजारीलाल नंदा यहां से 3
बार सांसद चुने गए। वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री अमर सिंह चौधरी की बेटी निशा
चौधरी भी कांग्रेस के टिकट पर तीन बार चुनाव जीत चुकी है। वहीं कांग्रेस के
दिग्गज नेता मधुसूदन मिस्त्री भी यहां से दो बार सांसद चुने गए हैं। वर्ष
2009 के बाद से इस सीट पर भाजपा का कब्जा है। 2009 में यहां से भाजपा के
महेन्द्र सिंह चौहाण, 2014 और 2019 में दीपि सिंह राठौड़ यहां से चुने गए
थे।