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बढ़ रही कांग्रेस-सपा के बीच दूरियां, विधानसभा चुनाव तक दोनों हो सकते हैं अलग


लखनऊ। इंडी गठबंधन में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच मतभेद गहराते जा रहे हैं। सपा की नाराजगी दिल्ली में देखने को मिला, जब सपा ने कांग्रेस नहीं, आप को समर्थन दे दिया। अखिलेश यादव ने यह भी घोषणा कर दी कि आप के समर्थन में वह दिल्ली में एक भी अपना उम्मीदवार नहीं उतारेगी। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि वर्तमान परिस्थिति देखकर यह नहीं लगता कि आने वाले विधानसभा चुनाव तक यह गठबंधन बना रहेगा।
दरअसल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच उप्र उपचुनाव से ही मतभेद गहरा गया था, जब दो सीटें देने पर कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार नहीं उतारा और सपा को एकतरफा समर्थन की घोषणा कर दी। यही नहीं हरियाणा और महाराष्ट्र में कांग्रेस समाजवादी पार्टी को एक भी सीट नहीं दी। यहां तक कि इस मुद्दे पर सपा से बात करना भी उपयुक्त नहीं समझा। इसके बाद हरियाणा और महाराष्ट्र में कांग्रेस हार गयी। सपा ने भी उप्र में अपनी दो सीटों को गवां दिया।
उपचुनाव में हार का एक कारण समाजवादी पार्टी कांग्रेस का साथ न देना भी मानती है। कांग्रेस की गतिविधियों को देखकर ही अखिलेश यादव ने महाराष्ट्र इकाई को चुनाव में छुट दे रखी थी। वहां सपा की दो सीटें निकल भी गयी। इसके बाद टकराव बढ़ता गया। संभल मुद्दे को प्रमुखता न देकर जब राहुल गांधी ने अदाणी का मुद्दा उठाया तो राम गोपाल यादव ने कह ही दिया कि राहुल गांधी पूरे विपक्ष के नेता नहीं हैं।

दरअसल, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस दोनों की निगाहें अल्पसंख्यक वोटरों पर टिकी है। समाजवादी पार्टी ने लोकसभा में समझौता भी इसी कारण किया था कि अल्पसंख्यक वर्ग का रूझान कांग्रेस की तरफ ज्यादा बढ़ता जा रहा था। जब संभल मुद्दे पर राहुल गांधी ने सपा की बढ़त देखी तो उन्होंने भी संभल जाने का फैसला कर लिया। इस पर भी सपा नाराज हुई। आने वाले समय में अल्पसंख्यक वर्ग को लेकर दोनों में और खटास बढ़ने की ही उम्मीद है।वहीं विधानसभा शीतकालीन सत्र को लेकर भी कांग्रेस ने अलग से अपना विरोध करने का फैसला किया और वह बिजली के निजीकरण मुद्दे पर अकेले 18 दिसम्बर को विधानसभा का घेराव करने जा रही है। इसको लेकर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय हर जिले और ब्लाक स्तर के कार्यकर्ताओं को लखनऊ बुलाने की तैयारी कर चुके हैं।वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हर्ष वर्धन का कहना है कि यह दोनों की निगाहें जब एक ही वोट बैंक पर है तो ऐसे में कोई गठबंधन ज्यादा दिन तक नहीं चल सकता। यह तो सिर्फ स्वार्थ का गठबंधन है।

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