रायबरेली, गांधी परिवार के लिए रायबरेली हमेशा से सेफ सीट रही है।
1999 के चुनाव को यदि छोड़ दें तो सीधे तौर पर गांधी परिवार से जुड़ा व्यक्ति
ही यहां से चुनाव लड़ा है। जिसमें 1996 और 1998 के अलावा सभी में वह विजयी
रहे हैं। लेकिन 2024 के लिए यह सवाल सबसे महत्वपूर्ण है कि क्या गांधी
परिवार अपने गढ़ को बचा पाएगी? चुनावी आंकड़े तो कुछ यही इशारा कर रहे हैं कि
2014 के बाद लोकसभा और विधानसभा में जिस तरह से कांग्रेस के वोट प्रतिशत
में गिरावट आई उससे राहुल गांधी के लिए डगर बहुत कठिन है।
रायबरेली
सीट पर गांधी परिवार का वर्चस्व रहा है और 2004 से लगातार कांग्रेस नेता
सोनिया गांधी जीतती रही हैं, लेकिन पिछले चुनाव में उनका जीत का मार्जिन कम
हो गया था। 2019 में सोनिया गांधी को 1 लाख 67 हजार वोटों के अंतर से जीत
मिली थी, जबकि इसके पहले 2004, 2006, 2009 3 लाख वोट से अधिक अंतर से
जीतती रही हैं। 2019 में सोनिया गांधी के जीत का अंतर 17.23 प्रतिशत ही रह
गया था और भाजपा के वोट प्रतिशत में जिस तरह इज़ाफ़ा हुआ था,कांग्रेस को
मुश्किल में डालने वाला है। 2022 के रायबरेली लोकसभा क्षेत्र में आने वाले
सभी पांचों विधानसभाओं के परिणाम तो कांग्रेस को और परेशान करने वाले
हैं,जब किसी भी विधानसभा में पार्टी की जीत नहीं हुई । केवल बछरावां को यदि
छोड़ दें तो ऊंचाहार,रायबरेली, हरचंदपुर और सरेनी सभी में कांग्रेस का वोट
प्रतिशत काफ़ी कम रह है। रायबरेली विधानसभा सीट पर कांग्रेस को 6.50 और
ऊंचाहार में 4.71 प्रतिशत वोट ही मिल पाए। जबकि हरचंदपुर में 8 प्रतिशत वोट
मिले हैं। केवल बछरावां और सरेनी में पार्टी 15 प्रतिशत से ज्यादा वोट पा
सकी। इसके भी पीछे प्रत्याशियों का अपना मजबूत प्रभाव बताया जा रहा है।यह
कांग्रेस के रणनीतिकारों के लिए बेहद कड़ी चुनौती है।जिसका समान इंडी गठबंधन
प्रत्याशी राहुल गांधी को करना है।
सपा का है भरोसा
2022
के विधानसभा चुनाव में रायबरेली के 5 में से 4 सीटों पर सपा ने जीत दर्ज कर
ली, जबकि एक सीट बीजेपी के खाते में गई,मतलब साफ है कि लोग कांग्रेस को
वोट नहीं देना चाहते हैं। 2022 के विधानसभा चुनावों में सपा ने समाजवादी
पार्टी पिछले कई चुनावों से रायबरेली में अपना प्रत्य़ाशी नहीं खड़ी करती
रही है और इस बार भी सपा इंडी गठबंधन में है। सपा ने विधानसभा चुनावों में
जिस तरह का प्रदर्शन किया है उससे साफ़ है कि राहुल का चुनावी सफलता का पूरा
दारोमदार सपा पर ही रहेगा। हालांकि बसपा के ठाकुर प्रसाद यादव की कोशिश
जरुर होगी कि वह सपा के मूल वोट बैंक में सेंध लगाएं लेकिन इसमें वह कितना
सफ़ल हो पाएंगे,यह समय बताएगा,लेकिन राहुल की नैया सपा के भरोसे ही है।जिसको
लेकर कांग्रेस पार्टी को बड़ी उम्मीदें हैं कि किसी तरह सपा का मजबूत वोट
बैंक आसानी से कांग्रेस की ओर ट्रांसफर हो जाय।