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लोस चुनाव : बरेली में नौंवी बार खिलेगा कमल या पंजा पड़ेगा भारी!


लखनऊ । झुमका नगरी बरेली राजनीतिक रूप से भाजपा का गढ़ रहा है, अगर 2009 के अपवाद को छोड़ दें तो यहां साल 1989 के बाद से भाजपा जीतती रही है। संतोष गंगवार यहां से आठ बार सांसद रहे हैं। इस बार संतोष गंगवार मैदान में नहीं है।





भाजपा ने छत्रपाल गंगवार को मैदान में उतारा

बहेड़ी विधानसभा सीट से दो बार विधायक और पेशे से शिक्षक रहे छत्रपाल गंगवार भाजपा की टिकट पर मैदान में हैं और अपनी जीत के लिए मोदी की गारंटी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की छवि के साथ चुनाव मैदान में पसीना बहा रहे हैं।



बसपा उम्मीदवार का पर्चा खारिज

बसपा ने यहां छोटेलाल गंगवार को मैदान में उतारा था लेकिन तकनीकी कारणों से उनका पर्चा ख़ारिज हो गया है। यहां अब चुनावी मुक़ाबला सीधे-सीधे गठबंधन से समाजवादी पार्टी के टिकट पर प्रत्याशी प्रवीण सिंह एरोन और बीजेपी के छत्रपाल गंगवार के बीच है।



कांग्रेस की टिकट पर प्रवीण ऐरन

कांग्रेस की टिकट पर प्रवीण ऐरन मैदान में हैं। प्रवीण एरोन यहां 2009 में संतोष गंगवार को हरा चुके हैं और उनकी पत्नी भी बरेली शहर की मेयर रही हैं।



जीत हार तय करते हैं कुर्मी वोटर

इस सीट पर गंगवार यानी कुर्मी जाति के मतदाताओं की बड़ी तादाद है। बसपा ने भी यहां से गंगवार प्रत्याशी मैदान में उतारा था जिससे यहां चुनावी मुक़ाबला दिलचस्प हो गया था, लेकिन पर्चा ख़ारिज होने के बाद अब परिस्थितियां बदल गई हैं। विश्लेषक मानते हैं कि संतोष गंगवार का टिकट कटने से गंगवार मतदाताओं में जो नाराज़गी थी वो भाजपा ने गंगवार उम्मीदवार मैदान में उतार कर ख़त्म कर दी है, वहीं बसपा के गंगवार उम्मीदवार का पर्चा ख़ारिज होने से यहां गंगवार मतों के बंटवारों की आशंका भी ख़त्म हो गई है।



राजनीतिक विशलेषक के0पी0 त्रिपाठी कहते हैं, "यदि बीएसपी उम्मीदवार मैदान में रहता तो परिस्थितियां अलग होतीं लेकिन अब भी यहां मुक़ाबला टक्कर का है। प्रवीण ऐरन का यहां अच्छा जनसंपर्क और पकड़ है। प्रवीण ऐरन यहां एक बार संतोष गंगवार को हरा चुके हैं और इस बार भी वह पूरे दमखम से मैदान में हैं। इस सीट पर मुसलमान वोटरों की भी बड़ी तादाद है, ऐसे में यहां मुक़ाबला बेहद दिलचस्प हो गया है।"

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