लोकसभा
 चुनाव-2024 में जिस तरह का चुनावी परिणाम आया है, उसने अच्छे-अच्छे 
राजनीतिक विश्लेषकों को धूल चटा दी है, एनडीए नीत भाजपा की मोदी सरकार को 
300 पार के सभी बड़े-बड़े दावे धरे रह गए और देश की जनता ने मजबूत विपक्ष 
देकर यह संदेश देने की कोशिश की है कि सहमति और विरोध का स्वर बराबर का हो,
 किंतु इसके साथ ही अनेक प्रश्न आज इस बार के चुनावों ने भारतीय राजनीति के
 लिए समीक्षा करने की दृष्टि से छोड़ दिए है । देश में नया नैरेटिव यह है 
कि किसी को भी भारत की जनता लोकतंत्र में इतना मजबूत नहीं देखना चाहती कि 
वह अन्य को छोटा समझने की मानसिकता रखे या उनके बारे में थोड़ा भी कमजोर 
सोच पाए, लेकिन इसके साथ जो बड़ा प्रश्न आज खड़ा हो गया है, वह है कमजोर 
सत्ता क्या एक सबल राष्ट्र के निर्माण में अपनी प्रभावी भूमिका निभा सकती 
है ? 
यह आज सभी के सामने है कि कैसे जनता ने भाजपा को पूरी
 तरह अपने दम सत्ता बनाने से उसे रोक दिया है, किंतु यह सच पूरे भारत का 
फिर भी नहीं है। देश के कई राज्यों ने शत प्रतिशत भारतीय जनता पार्टी पर 
भरोसा जताया है। लोकसभा की 542 सीटों की काउंटिंग में दिल्ली, उत्तराखंड, 
हिमाचल, मध्य प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा में भाजपा ने क्लीन स्वीप
 किया है।  देश की राजधानी से ह्रदय प्रदेश मध्य प्रदेश तक भाजपा पर भारत 
की जनता मोहित है, लेकिन वहीं, एक सच यह भी है कि इस बार का जनादेश बीजेपी 
से ज्यादा एनडीए के लिए है। बड़ी बात यह है कि दस सालों में पहली बार ऐसा 
हुआ है कि एनडीए का आंकड़ा 300 भी पार नहीं कर पाया और बीजेपी भी बहुमत के 
272 के आंकड़े को नहीं छू पाई है, इसलिए उसे अपने सहयोगियों के सहारे देश 
का शासन चलाना होगा। अब प्रश्न यह है कि क्या ऐसे में देश बड़े निर्णय कर 
पाएगा? 
सामान्य न्यूनतम कार्यक्रम (सीएमपी) अपनाकर भारत 
कितना तेजी से आगे विकास करेगा, यह अब देखना होगा। क्योंकि अब तक पिछले दस 
सालों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भाजपा सरकार सख्त फैसले लेने के 
लिए स्वतंत्र थी, किंतु इस बार ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। पिछले 10 साल सबसे 
अधिक परिवर्तनकारी रहे हैं। अब तक भाजपा की मोदी सरकार एक ऐसी सरकार रही है
 जिसने दशकों पुरानी समस्याओं को हल करने में बड़ी कामयाबी हासिल की । 
अनुच्छेद
 370 को हटाने, सेना के लिए वन रैंक वन पेंशन, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के पद 
का सृजन, अयोध्या, काशी जैसे धार्मिक क्षेत्र निर्माण, राम मंदिर 
पुनर्प्रतिष्ठा, मजबूत अर्थव्यवस्था के लिए आर्थिक क्षेत्र में कई कड़े 
निर्णय, व्यवसाय के क्षेत्र में जीएसटी, इन्सॉल्वेन्सी एंड बैंकरप्सी कोड, 
नोटबंदी, काले धन के खिलाफ अभियान, क्रोनी कैपिटलिज्म, सरकारी ठेके में 
भ्रष्टाचार को खत्म करने विशेष कार्यक्रम, भारतीय उद्योग के लिए आत्मनिर्भर
 अभियान शुरू करना, नारी शक्ति वंदन कानून, अंतरिक्ष में भारत की ऊंची 
छलांग के लिए मजबूत कार्यक्रम, खेल सुविधाओं में बढ़ोतरी के लिए निर्णय, 
सहकारिता आंदोलन को समाज की अर्थव्यवस्था का प्रमुख हिस्सा बनाने के लिए 
सहकारिता मंत्रालय जैसे निर्णय मोदी सरकार के बड़े निर्णय रहे हैं।  
इसी
 तरह से मैन्युफैक्चरर्स के लिए पीएलआई कार्यक्रम ने भारतीय उद्योग को 
प्रगति के पथ पर अग्रसर किया है । आधार कार्यक्रम, डिरेक्ट बेनेफ़िट 
ट्रांसफ़र (डीबीटी कार्यक्रम) और व्यापक स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम हों या 
विदेशी मामलों से जुड़े निर्णय हरेक मोर्चे पर अब तक मोदी सरकार दृढ़ता से 
खड़ी नजर आई है। पाकिस्तान को आतंकवाद के मुद्दे पर बेनकाब करने से लेकर 
चीन की आक्रामता का वास्तविक नियंत्रण रेखा पर दिया गया भारत का जवाब, ऐसे 
अनेक कार्य हैं जिन्हें आज भाजपा की मोदी सरकार को लेकर सफलता के साथ 
गिनाया जा सकता है और इन्हीं का यह परिणाम भी है कि भारत दुनिया की वर्तमान
 में तीसरी आर्थिक शक्ति बनने जा रहा है। किंतु संदेह अब नया है और यह होना
 स्वभाविक भी है, क्योंकि अब तक तो भाजपा पिछले दो बार से अपने दम सत्ता के
 लिए आवश्यक नंबर लेकर आ रही थी, वह इस बार अपना स्वयं का बहुमत का आंकड़ा 
नहीं छू पाई है। जिसके चलते अब सामूहिक नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस (एनडीए) 
का  नया साझा प्रोग्राम देश पर लागू होगा और इस राष्ट्रीय जनतांत्रिक 
गठबंधन में कुल 41 दल शामिल हैं। विषय यह है कि क्या इन सभी के मन की बात 
को रखते हुए भाजपा @ मोदी-03 सरकार अपने स्तर पर स्वतंत्र निर्णय ले पाएगी?
 
भाजपा ने लोकसभा चुनाव 2024 के लिए जो अपना घोषणा
 पत्र जारी किया था, उसमें कई मुख्य बिन्दु हैं, जिन्हें पूरा करने का 
संकल्प भाजपा का है । जिसमें कि सरकार ने 70 साल की उम्र से ऊपर के किसी भी
 वर्ग के बुजुर्गों को आयुष्मान भारत योजना के तहत 5 लाख रुपये तक के मुफ्त
 इलाज, गरीबों के लिए 3 करोड़ घर, गरीबों को मुफ्त राशन 2029 तक देने की 
गारंटी तो है ही, साथ में एक राष्ट्र-एक चुनाव और समान नागरिक संहिता के 
प्रति भाजपा की प्रतिबद्धता को दोहराया गया है। 
भाजपा के 
संकल्प पत्र में अन्य मुख्य बिन्दु देखें तो मुद्रा ऋण की सीमा 10 लाख से 
बढ़ाकर 20 लाख रुपये करना, सभी घरों में स्वच्छ पेयजल, गरीब परिवारों को 
मुफ्त बिजली, अधिकाधिक आईआईटी, आईआईएम, एम्स और अन्य ऐसे संस्थान खोलना, 
उत्तर, दक्षिण और पूर्वी भारत में बुलेट ट्रेन कॉरिडोर, मेट्रो नेटवर्क का 
विस्तार, पेपर लीक रोकने के लिए कानून , विद्यार्थियों के लिए स्वचालित 
स्थायी शैक्षणिक खाता रजिस्ट्री (एपीएएआर) 'एक राष्ट्र, एक छात्र आईडी' को 
लागू करना, कामकाजी महिलाओं के लिए छात्रावासों में वृद्धि, तीर्थ यात्रा 
योजना, उच्च शिक्षा संस्थानों में इन्क्यूबेशन केन्द्रों की स्थापना, सब्जी
 उत्पादन एवं भंडारण के लिए नए क्लस्टर, भारत को उच्च मूल्य सेवा केन्द्र 
बनाने के लिए, नए वैश्विक पूंजी केन्द्र, वैश्विक प्रौद्योगिकी केन्द्र और 
वैश्विक इंजीनियरिंग केन्द्र की स्थापना, भारत के प्रथम मानव अंतरिक्ष 
उड़ान मिशन, गगनयान को प्रक्षेपित करना तथा चंद्रमा पर एक अंतरिक्ष यात्री 
को उतारना, भगवान राम की विरासत को बढ़ावा देने के लिए एक वैश्विक आउटरीच 
कार्यक्रम शुरू करने जैसे अनेक संकल्प रखे गए । 
वस्तुत: 
भाजपा अपने तीसरे कार्यकाल के जरिए सेवा, सुशासन और गरीब कल्याण की गारंटी 
दे रही है। 2036 में ओलंपिक की मेजबानी भारत करे, इसके लिए तैयारियां होनी 
हैं। इंफ्रास्ट्रक्चर, इन्वेस्टमेंट, मैन्युफैक्चरिंग, हाई वैल्यू 
सर्विसेज, स्टार्टअप और टूरिज्म और खेल के जरिये लाखों रोजगार देश में पैदा
 हों, इस पर काम होना है। नारी तू नारायणी के तहत आगे तीन करोड़ लखपति दीदी
 बनाने की भाजपा की योजना है। इसी प्रकार से अन्य कई योजनाओं पर काम करने 
का संकल्प भाजपा ने अपने तीसरे कार्यकाल के लिए ले रखे हैं, वास्तव में अब 
देखना यह होगा कि ताजा राजनीतिक हालातों में भाजपा की केंद्र सरकार क्या 
अपने लिए इन संकल्पों को सहजता के साथ पूरा कर पाएगी?
भाजपा को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने से क्या फर्क पड़ता है ?
									











