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अंबिकापुर : खसरा नंबर नहीं, छत्तीसगढ़ की संवेदना दांव पर, अमरजीत भगत का सरकार पर तीखा हमला


अंबिकापुर। सरगुजा जिले के सीतापुर के बटईकेला गांव से सामने आया मामला अब केवल शासकीय भूमि, खसरा नंबर या आंगनबाड़ी भवन निर्माण तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि यह छत्तीसगढ़ की राजनीति और शासन की संवेदनशीलता की असली परीक्षा बनता जा रहा है। खसरा नंबर 1784 की शासकीय भूमि पर आंगनबाड़ी भवन का निर्माण शुरू होते ही वर्षों से वहां निवास कर रहे एक परिवार का जीवन संकट में आ गया है। इस परिवार के चार सदस्य दिव्यांग हैं और उनके पास रहने के लिए कोई वैकल्पिक स्थान नहीं है। अपनी बेबसी में इस परिवार ने इच्छामृत्यु की अनुमति मांगते हुए कलेक्टर सरगुजा को बीते दिनों ज्ञापन सौंप दिया, जिसने पूरे प्रदेश को झकझोर कर रख दिया है।

इस मानवीय पीड़ा और प्रशासनिक असंवेदनशीलता को उजागर करते हुए सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर आकांक्षा टोप्पो ने एक वीडियो साझा किया था। वीडियो में न तो किसी प्रकार की गाली-गलौज थी और न ही किसी के प्रति अभद्र भाषा, बल्कि यह सरकार और सिस्टम से पूछा गया एक सीधा, मानवीय सवाल था। लेकिन इस सवाल का जवाब संवेदना या समाधान के बजाय एफआईआर और गिरफ्तारी के रूप में सामने आया, जिसने राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज कर दी है।

अमरजीत भगत का सरकार पर सीधा प्रहार

छत्तीसगढ़ कांग्रेस के कोटे से पूर्व कैबिनेट मंत्री अमरजीत भगत ने इस पूरे मामले को लेकर आज शनिवार को सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि, सीतापुर के बटईकेला का यह मामला सिर्फ एक खसरा नंबर या निर्माण परियोजना की कहानी नहीं है, यह छत्तीसगढ़ की संवेदनशीलता और उसकी राजनीति की असली परीक्षा है।

उन्होंने लिखा कि चार दिव्यांग सदस्यों वाला परिवार घर बचाने के लिए मौत की अर्जी दे रहा है और सरकार कानून-व्यवस्था का हवाला दे रही है। यह वही राजनीति है, जहां गरीब की पीड़ा असुविधा बन जाती है और सवाल पूछने वाली आवाज़ को अपराध घोषित कर दिया जाता है।

अमरजीत भगत ने स्पष्ट शब्दों में मांग की कि पहले उस पीड़ित परिवार के पुनर्वास और छत की ठोस व्यवस्था की जाए तथा आकांक्षा टोप्पो पर दर्ज एफआईआर को तत्काल वापस लिया जाए। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ की मिट्टी डर से नहीं, बल्कि संवेदना और इंसाफ से चलती है।

राजनीतिक पारा बढ़ा

इस बयान के बाद मामला और अधिक सियासी रंग लेता दिख रहा है। कांग्रेस इस मुद्दे को आदिवासी अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मानवीय संवेदना से जोड़कर सरकार पर हमला बोल रही है, वहीं सत्तापक्ष इसे कानून-व्यवस्था से जुड़ा मामला बता रहा है। आने वाले दिनों में यह प्रकरण प्रदेश की राजनीति में और तीखी बहस का कारण बन सकता है।

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